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गौमाता की महिमा


गौमाता सर्वदेवमयी है । अथर्ववेद में रुद्रों की माता, वसुओं की दुहिता, आदित्यों की स्वसा और अमृत की नाभि-

संज्ञा से विभूषित  किया गया है । गौ सेवा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों तत्वों की प्राप्ति सम्भव बताई गई है । 
भारतीय शास्त्रों के अनुसार गौ में तैतीस  कोटि देवताओं कावास है । उसकी पीठ में ब्रह्मा, गले में विष्णु और मुख में रुद्र 
आदि देवताओं का निवास है । इस प्रकार सम्पूर्ण देवी-देवताओं की  आराधना केवलगौ माता की सेवा से ही हो जाती है । 
 गौ सेवा भगवत् प्राप्ति के अन्य साधनों में से एक है । जहां भगवान मनुष्यों के इष्टदेव है,  वही गौ  को भगवानके इष्ट 
 देवी माना है । अत: गौ सेवा से लौकिक लाभ तो मिलतें ही हैं पारलौकिक लाभ की प्राप्ति भी हो जाती है ।
शास्त्रों में उल्लेख है किधर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की सिद्धि गौ से ही सम्भव है । गौ  सेवा से मनुष्य को
 धन, संतान और दीर्घायु प्राप्त होती हैं ।  गाय जब संतुष्ट होती है  तो वहसमस्त पाप-तापों को  दूर  करती   है । दान  में
  दिये  जाने पर वह अक्षय स्वर्ग लोक को प्राप्त करती है अत: गोधन ही वास्तव में सच्चा धन है । 
 गौ सेवा से ही  भगवान श्री  कृष्ण को भगवता,  महर्षि  गौतम,  कपिल,  च्यवनसौभरि तथा आपस्तम्ब आदि को परम 
सिद्धि प्राप्त हुई ।महाराजा दिलीप को रघु जैसे चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति हुई । गौसेवा से  ही अहिंसा धर्म  कोसिद्ध कर
 भगवान महावीर एवं गौतम बुद्ध ने अहिंसा धर्म को विश्व में फैलाया ।जैन धर्मके प्रथम तीर्थकर भगवान आदीनाथ को
 ऋषभ भी कहते हैं जिनका सूचक बैल ;ऋषभ द्ध है । वेद-शास्त्र स्मृतियां, पुराण तथा इतिहास गौ की  महिमा से ओत
-प्रोत है । और यहां तक की स्वयं वेद गाय को नमन करता है ।
 ऋग्वेद  में  कहा गया है  कि जिस स्थान पर  गाय सुखपूर्वक  निवास करती है वहां  की रजत पवित्र हो जाती है ।
 पुरातन काल से ही  हमारी  भारतीयसंस्कृति में गाय श्रद्धा का पात्र रही  है । पुराण काल में एक ऐसी गाय की कल्पना
 की गई है  जो  हमारी  सभी  इच्छाओं  की पूर्ति  करती  है । इसे कामधेनू कहते हैं । यह स्वर्ग में रहती हैं और जन 
समाज के कल्याण के लिए मानव  लोक  में अवतार ले लेती है ।
भारतीय संस्कृति ही नही अपितु सारे विश्व में गौ का बड़ा सम्मान रहा है । जैसे हम गौ की पूजा करते हैंउसी  प्रकार 
 पारसी  समाज के  लोग सांड़ की पूजा करते हैं । सर्वविदित है कि मिश्र देश के प्राचीन सिक्कों पर बैल की मूर्ति अंकित
 रहती थी । गौभक्त मनुष्य जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है वह सब उसे प्राप्त होती है । स्त्रियों में भी जो गोओं 
की भक्त है वे मनोवांछित कामनाएं प्राप्तकर लेती है ।पुत्रार्थी मनुष्य पुत्र पाता है और कन्यार्थी कन्या । धन चाहने
 वाले को धन और धर्म चाहने वाले को धर्म प्राप्त होता है ।
दूध, घी, दही के अतिरिक्त गौ का मूत्र और  गोबर भी इतने ही उपयोगी माने गये है ।
गवा मूत्रपूरीषस्य नोद्विजेत: कदाचन ।
धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की सिद्धि गौ से ही सम्भव है ।

गौ रक्षा हिन्दु धर्म का एक प्रधान अंग माना गया है । प्राय: प्रत्येक हिन्दु गौ को माता कहकर पुकारता है और माता
  समान ही  उसका आदर करता है । जिस प्रकार कोई भी  पुत्र  अपनी माता  के प्रति किये गये अत्याचार को सहन 
नही करेगा उसी प्रकार  एक सच्चा  हिन्दु  गौमाता के प्रति निर्दयता के व्यवहार  को सहन  नही करेगा ।
 आपके परिवार पर गौमाता की शुभाशीष एवं प्रभु की असीम अनुकम्पा सदा बरसती रहे , ऐसी हमारी 
मंगल कमाना है।


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