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इस्लाम की छवि पूरी दुनिया में बुरी क्यों है… शायद ज़ाकिर नाईक जैसों के कारण

एक इस्लामिक विद्वान(?) माने जाते हैं ज़ाकिर नाईक, पूरे भारत भर में घूम-घूम कर विभिन्न मंचों से इस्लाम का प्रचार करते हैं। इनके लाखों फ़ॉलोअर हैं जो इनकी हर बात को मानते हैं, ऐसा कहा जाता है कि ज़ाकिर नाईक जो भी कहते हैं या जो उदाहरण देते हैं वह “कुर-आन” की रोशनी में ही देते हैं। अर्थात इस्लाम के बारे में या इस्लामी धारणाओं-परम्पराओं के बारे में ज़ाकिर नाईक से कोई भी सवाल किया जाये तो वह “कुर-आन” के सन्दर्भ में ही जवाब देंगे। कुछ मूर्ख लोग इन्हें “उदार इस्लामिक” व्यक्ति भी मानते हैं, इन्हें पूरे भारत में खुलेआम कुछ भी कहने का अधिकार प्राप्त है क्योंकि यह सेकुलर देश है, लेकिन नीचे दिये गये दो वीडियो देखिये जिसमें यह आदमी “धर्म परिवर्तन” और “अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकार” के सवाल पर इस्लाम की व्याख्या किस तरह कर रहा है…
पहले वीडियो में उदारवादी(?) ज़ाकिर नाईक साहब फ़रमाते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मुस्लिम से गैर-मुस्लिम बन जाता है तो उसकी सज़ा मौत है, यहाँ तक कि इस्लाम में आने के बाद वापस जाने की सजा भी मौत है…नाईक साहब फ़रमाते हैं कि चूंकि यह एक प्रकार की “गद्दारी” है इसलिये जैसे किसी देश के किसी व्यक्ति को अपने राज़ दूसरे देश को देने की सजा मौत होती है वही सजा इस्लाम से गैर-इस्लाम अपनाने पर होती है… है न कुतर्क की इन्तेहा… (अब ज़ाहिर है कि ज़ाकिर नाईक वेदों और कुर-आन के तथाकथित ज्ञाता हैं इसका मतलब कुर-आन में भी ऐसा ही लिखा होगा)। इसका एक मतलब यह भी है कि इस्लाम में “आना” वन-वे ट्रैफ़िक है, कोई इस्लाम में आ तो सकता है, लेकिन जा नहीं सकता (इसी से मिलता-जुलता कथन फ़िल्मों में मुम्बई का अण्डरवर्ल्ड माफ़िया भी दोहराता है), तो इससे क्या समझा जाये? सोचिये कि इस कथन और व्याख्या से कोई गैर-इस्लामी व्यक्ति क्या समझे? और जब कुर-आन की ऐसी व्याख्या मदरसे में पढ़ा(?) कोई मंदबुद्धि व्यक्ति सुनेगा तो वह कैसे “रिएक्ट” करेगा? 

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